' गाँधी आदर्शो वाला बने गांव '

                                                         ' गाँधी आदर्शो वाला बने गांव '


             गांव जीवंतता की महक हे , गांव की भूमि की खुश्बू अलौकिक हे . गांव में रहनेवाले सभी धर्म , जाती के बिच की सहकर्मिता , समभाव और पारस्परिक सयोंजन मिठासपूर्ण हो तो गांव सौहार्दपूर्ण रूप से उत्कृस्ट बनता हे . गांव के विकास के लिए ग्राम स्वराज के सिद्धांत और गाँधीविचार पर अभी के गांव के लोको की परिस्थिति एवं विकास के समुचित आयोजन में कार्यसंसोधन आवश्यक हे . गांव के लोको की शिक्षा रस एवं रूचि, कार्यशैली, और आजीविका के स्त्रोत का आंकलन व्  संसोधन कर ग्राम विकास के लिए एक श्रेस्ट कार्य पद्धति , गांव की स्वछता, कृषि पशुपालन जैसे पारम्परिक आजीविकाओं में सुधार,  आरोग्य , पेयजल , शिक्षा पद्धतिओ में सुधार पर गौर कर कैसे बेहतरीन बना सके उस पर फिर विचार आवश्यक बना हुआ हे  .


               हम जानते हे की गाँवो की आजीविका सिमित क्षेत्रों से एवं गांव के लोग सिमित संसाधनों का उपभोग करते हे और आजीविका प्राप्त करते हे.

                महात्मा गाँधीजी के ग्राम स्वराज के ख्याल के अनुकूल उनकी विभावनाओ का हार्द भी यह ही हे की कैसे गांव समायोजित , समरस और  स्वावलम्बी हो  . ग्राम विकास विभाग केवल सिमित  योजनाओ के आधार पर पूर्ण ग्राम विकास नहीं हो  सकता और लोगो को केवल आर्थिक या अन्य सहायो के आधार पर नहीं रखा जा सकता , हम यह सब आज़ादी से लेकर आजपर्यन्त यह देख रहे हे फिर भी उसके परिणाम अंशतः सफल मालूम हो रहे हे क्यों ? क्योकि इससे स्वावलम्न , समरसता , कर्म सेवा , सहिष्णुता जैसे मूल सिद्धता का लोक जीवन में आविर्भाव भी जरूरी हे .

                     गांव में उत्पादित चीज वस्तुए का उच्चमूल्य , स्वदेसी चीजों जो गावो से हो उसका विशाल क्षेत्र में उपयोग वह भी ग्राम विकास में महत्वपूर्ण हे . स्थानिक  नेतृत्व , गाँधी मूल्यों के अनुरप सर्व समावेसकता और सर्वोदय पवृति आज भी ग्राम विकास में उतनी ही महत्वपूर्ण हे .  ग्राम शिक्षा में गाँधीवादी संस्थानों का महत्तम प्रयोग भी जरुरी हे . ताकि  सिर्फ आधुनिकता की आंधी  गावो को भी सम्पूर्ण न अपनी असर में ले ले. जिससे गांव की मिटटी की महक भी बनी रहे और उसको हम महात्मा के विचारो के अनुरूप विकास को  दिशा भी  दे पाए .  गांव की संस्कृति और धरोहर को आगे कर भी हम विकास सन्मुख हो सकते हे .  गांव के लोको की सेवा शक्ति का उपयोग राष्ट्र निर्माण में अति आवश्यक हे . गांव के संसाधनों का महत्वपूर्ण और सही उपयोग हो , आज गांव की हवा भी सुरक्षित हे उसे हम सिर्फ मनुष्य स्वार्थ हेतु बिगड़ ने ना दे , गांव की नदी ओका पुनर्जीवन , जल संचय और स्वछता गांव विकास के लिए अत्यंत  महत्वपूर्ण हे . और गांव की छोटी छोटी चीजे जैसे वहा की सांस्कृतिक धरोहर का जतन उसका आधुनिक सयोंग से पूण सर्जन और योग्य दर्शनरूप सजावट , गांव के लोको का और खास कर महिला स्वसहाय जूथ के  बचत के गुन , खेती , पशुपालन , पारपरिक व्यवसाय , में गांव के  महत्व का प्रतिपादन  होना चाहिए  हे  .

                      कुछ महत्वपूर्ण बात जो गांव विकास में बाधारूप हे उस पर गौर करे तो , गांव के लोको के बिच का परस्पर का अविश्वास , स्वार्थ , ईर्ष्या , वेरजेर जैसे दुर्गुण गांव में बसे नागरिको को स्वयं दूर करने के लिए भी बुनियादी बनना पड़ेगा . तो गावो में पनपकर पड़ी रही अंधश्रद्धा , कुरिवाज को दूर करनाही होगा . कन्या केलवनी को बढ़ावा तो इस और  किशोरों में हो रहा शिक्षा के प्रति अरुचि भी काफी चिंता का विषय हे और ग्राम विकास और सामजिक असंतुलन के बारे में गौर  करना जरुरी  हे . हुनर साला कुटीर और हुनर उद्योग को बढ़ावा दे साथ ही गावो में उच्च शिक्षा का आयोजन और ग्रामीण क्षेत्रों में सही मूल्यनिस्ट कार्य योजनाए आवश्यक हे .
 आज भी प्रासंगिक हे  महात्मा गांधीजी के रचनात्मक कार्य - सेवा , सव्छ्ता , स्वावलम्बिता , जैसे कार्यो को उन्मूलन आज फिर और जरुरी हुआ हैं और लोको की दृस्टि और कर्मता इस और होनी हे .

                                                                         
                                                            ~- धन्यवाद -~

 



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