अहिंसक  संचार  -  सुचारु और शांतिमय विश्व भविष्यका मानवीय तत्व । 



         हमारे संचार संस्कार हममे , आस पास के व्यवहार , सामाजिक , वातावरण एवं पृथ्वी निसर्ग पर उसके वाईब्रेस्टियन्स असरकर्ता हैं। अहिंसक संचार अभ्यास क्रम में बताया गया हैं उसी तरह हर प्रकारका संवाद - संचार माध्यम जीवन की अहम भूमिका हैं जो हमारा और ब्रह्माण्डका भविष्य रचित करनेमें एहम भूमिका प्रदान करता हैं।  

      संचारसे हमारी मानवीय सहज प्रकृतिका घट्न , विघटन , सामजिक वातवरण , व्यवहार , परिस्थितिया , सुख - दुःख , और नए नए संस्कार बनते हैं। इसे कैसे बहेतर बनाया जाये ? संचार जितनाही  अहिंसक , प्राकृतिक समन्वयकारी , सहयोग करने वाला , सकारात्मक , अच्छाइया फ़ैलाने वाला, प्रकृति के अनुकूल हो तो सभी जीवोंका जीवन संतुलीत , और पृथ्वी पर बोज रूप नहीं बनेगा ।  और हमे स्वयं और दूसरे जीवोको हानि नहीं करेगा।

अहिंसक संचार मन , कर्म , विचारो , भावो , से सहानुभूतिपूर्ण हो , मौन संचार भी हितकारी हो , क्युकी इन सब का असर ब्रह्माण्ड पर पड़ता हैं।  अहिंसक संचार के लिए हमे अपने आप को ज्यादा समतापूर्ण , सहनसील एवं नियमित अहिंसक प्रचारका अभ्यास एव स्वाध्याय जीवनमें उतारकर अहिंसक रूपसे प्रेम , सेवा -करुणा , सुसंवाद स्थापित करना हैं।

हमे जानना चाहिए की हर समय एक या दूसरे व्यीक्तिकी सोच अलग ही होगी।  जिससे विवाद उत्पन  न हो बल्कि धैर्य और दूसरे व्यक्ति की समज को परखकर अहिंसक व्यवहार करना जरुरी हैं। हम अपने व्यक्तिगत भय -से , पूर्व संस्कारो से , मान्यताओं से ,  अपनी भावनाओ के प्रति अति लगाव से , अपनी लालच और अन्य कारण हेतु हम हिंसक संचार में जाने अनजाने में शामिल होते हैं।  इस लिए हमे असिंसक संचार हेतु सजग होना हैं। हमे सोचकर व्यवहार करना हैं की क्या सही हैं , क्या हमारे और दूसरे सब के लिए हितकारी हैं , क्या सकारात्मक हैं।  इस प्रकार हमें अहिंसक संचार करना हैं।

अहिंसक प्रचार अपने आप में एक ध्यान ही हैं।  जिससे हम में और ऊर्जा सम्मलित होती हैं - और आस पास के वातावरण को प्रफ्फुलित करती हैं । अहिंसक प्रचार यानि सिर्फ अच्छा बोलना ही नहीं , किन्तु हदय के शुद्ध भावो से - निर्मल चित से बोलना और स्वयं और दुसरो के प्रति व्यवहार करना संचार करना अहिंसक संचार हैं । यह भी ध्यान रखना हैं की अहिंसक प्रचार सिर्फ अपने लिए ही सिमित न हो।

अहिंसक संचार यानि वर्तमान के वर्तन से वर्तमान या भविष्य के प्रति अपनी या किसी की हानि न हो।
अहिंसक संचार में  न्यायदर्शी व्यवहार , तुलनात्मक अन्याय , मूल्यांकित भाषा न करते हुए दैनिक जीवन में दुसरो के प्रति समज , सन्मान,सहांनुभूति, स्वीकार्यता , और प्रशंशा जैसे गुणों को अपने में और सिंचित करना हैं ।  

अहिंसक संचार अभ्यास के बाद उस स्थिति में में उस समय दोस्त के साथ संचार संवाद के वख्त धैर्य रखता , दोस्त को गहनता से सुनता , समझता , उसकी जगह पर अपने आप को रखकर देखता , अपनी व्यक्तिगत भावनाओ पर काबू रखता , विवादों को सहन कर टालता , दोस्ती के सम्बन्ध को और मजबूत करने की कोशिश करता , दोस्त की परिस्थिति पर खुदको रखकर देखता , और अपने क्रोद्ध को पहलेसे ही काबू में रखने की कोशिस करता और अच्छे संबंध के भविष्य हेतु सोचता व्यवहार करता , अपनी त्रुटिओ को दूर करने के
बारे में सोचता , उसे अपनी भावनाये कहता , और अपने कुछ ही सम्बन्ध जो बने हैं उस क्यों कम करू दूर करू , अव्यवहार करू आदि।

यह बात थोड़ी कठिन ही सही ! पहले मुझे अपने खुदके आहत होने के भय -डर के संस्कारो - संवेदनो के प्रति सजग होना होगा उसे दूर करना होगा। पूर्व के वर्तन जिससे में आहत हुआ था या होता हु उसे मुझे माफ़ करना होगा भूलना होगा तभी में आगे अच्छा व्यवहार कर पाउगा।  एक सकारात्मक वातावरण फिरसे निर्मित करना हैं।, प्रयाश करना हैं , शुरुआत करनी होगी , जो व्यवहार मुझे पसंद नहीं हैं वोह मुझे भी किसी और से नहीं करने हैं।  उसके अच्छी बातो को सराहना हैं - ध्यान में रखना हैं।  हर व्यक्ति के विचार जुदा हैं यह में जानता हूँ ।  उसके पास और मध्यस्थी व्यक्ति द्वारा उनके अच्छेपन को उजागर करना प्रशंशा करना हैं।  जिससे ज़हर कम होता हैं - और आगे का व्यवहार सुरक्षित और अहिंषक प्रचार के रूप में होना शुरू  होता हैं । अपने प्रति उनके हदय में अच्छा विचार स्थान प्राप्त करनेका वातावरण या अपने रचनात्मक या सकरात्मक कार्यो को मजबूती प्रदान करनी होगी। 
इसके लिए अहिंसक संचार के सभी पहलू ओका  अच्छी तरह से स्वध्याय एवं चित में पड़े अहम् , ईर्ष्या , मोह , लालच , आलस , जैसे दुर्गुणों को दूर कर निर्मल चित होना बहोत जरुरी हैं।

दूसरे के मन में अपने प्रति जो भी दुर्भावना हो उसे ध्यान में न लेकर मानवता , सहिष्णुता और उसके भी भले की भावना को साथ लेकर  पूर्वाग्रहों , भयो , अहम आदि दूर कर वर्तमान में रह कर हिम्मत के साथ उसके साथ हाथ बढ़ाने  के लिए आगे बढ़ना होगा , धीरे से शुरुआत करते हुए उनके सम्मान , स्वीकार्यता कर स्वयं सहजता भावो से उसे खुलेपन से मिलना , और में अपने व्यक्तिगत दुराग्रहों , अहम् आदि को दूर कर यह कर सकता हु।  जिससे विवाद दूर होकर उसके मन की छापे भी दूर होकर एक दूसरे के प्रति ज़हर कम होकर , फिर संबंध विकसित होंगे और 'मन हिंसा' दूर होगी , साफ विचार की भावनाये ऊपर उठकर अच्छा वर्तमान और सम्बन्ध का भविष्य बन सकेगा।

जी हां क्रोद्ध आदि दोष अज्ञानता , असजगता , मूढ़ता आदि में ही फलते फूलते हैं । इसके लिए में समता ध्यान का अभ्यास कर क्रोद्ध पर प्रबंधन कर सकता हु।  कहते हे की क्रोद्ध आवेग हे जो हमारे शरीर में संवेदनाओ के रूप में मन और मस्तिष्क से उठते हैं , इसका ध्यान अभ्यास कर हम इस पर और आसानी से प्रबंधन कर शकते हैं। उसके लिए ध्यान के माध्यम से क्रोद्ध के संवेदनो  को जानकर हम उसे समता से देख शकते काबू प् शकते हैं। 

 ' विपस्सना ' ध्यान प्रणाली के अभ्यास अनुसार  मनचाही न होने पर , और अनचाही होने पर दुःख की क्रोद्ध की संवेदनाये जगती हैं।  इस में हम लिप्त न हो कर और सुख और दुःख दोनों ही संवेदनाओ में समता रखकर हम प्रबंधन कर शकते हैं । जिससे क्रोद्ध के परिणाम स्वरूप हम खुद भी दुखी होते खुद को जलाते हैं और दुसरोको भी इस आग में जलाते हैं , हानि करते हैं और आस पास के वातावरण को दुखी करते हैं । अपने चित को मेला कर कर चित जैसे एक पेट्रोल की टंकी बन जाती हैं जरा भी कोई माचिस तिनखा आग पास आयी आसपास कोई घटना घटित होती हैं , और जल उठता हे मनुष्य खुद भी जलता हैं और औरो कोभी इस आग में जलाता हैं।  और दुख प्रक्रिया को आगे बढ़ता हैं।  इसे रोकना और ऐसे क्रोद्ध जैसे कई विकारो को चित से अपने कर्म यात्रा से जमा हुए मेल को  हम विपस्सना ध्यान द्वारा निर्मूल कर शकते हैं।  और चित निर्मल कर शकते हैं और इस माध्यम से करुणा , मुदिता , प्रेम जैसे सदगुण जो मूल हैं हमारे - वह ऊपर उठकर आते हैं।  में यह बात इस अहिंषक संचार माध्यम के साथ जोड़ना चाहता  हु की यह १० दिवसीय विपश्यना ध्यान साधना कोर्स - अभ्यास  आंतरिक तरीके से अहिंषक संचार को निर्मलता से गहराई से विस्तृत कर सकता  हैं।  यह ध्यान पद्धति २५०० वर्ष पूर्व भारत की ही देंन हैं।  में अहिंषक संचार के अभ्यासी सभी से यह विपस्सना ध्यान अभ्यास इसके निशुल्क १० दिवसीय कोर्स करने का सभीसे आग्रह जरूर करूँगा।  और इसके कोर्स के अभ्यास के बाद दैनिक जीवन में सुबह शाम १ घंटे का ध्यान करके हम दैनिक हिसंक संचारो और मन के विकारो को दूर करते रहते हैं।

जरूर से ही कृतज्ञता व्यक्त करने की आदत एक दूसरे में व्यक्ति से व्यक्ति के प्रति जिन किसे के बिच में भी संवाद या संचार होता हे उसमे कृतज्ञता के संचार से एक खुसी , आदान प्रदान का भाव ऊपर उठता हैं जिससे कृतज्ञता देने वाला और प्राप्त करने वाला दोनों में आनंद , उत्साह , खुसी , मुदिता और आगे अच्छी तरह से दुसरो को मदद करने कुछ सीखने या संचार करने में दुगनी खुसी और अहिंषक संचार का भाव प्रगट होता हैं।  इसे अपने दैनिक व्यक्त , अव्यक्त , लिखित या मौखिक संचार में हर जगह जरूर लाना चाहिए।

सबसे पहले अहिंसक संचार विषय अभी कहा कहा तक पंहुचा हैं , लोगो में इसके प्रति जाग्रति का स्तर कहा तक का हैं इसका में अभ्यास कर एक प्राथमिक विश्लेषण अहेवाल तैयार करना होगा।  फिर इस विषय का पूर्ण अभ्यास कर इस विषय की जमीनी और प्राथमिकी जरूरतों के पहलुओं को तैयार कर इस विषय की तत्परता , उत्सुकता और जागृतता लोगो में एक अहम दिलचस्पी और सबको अभ्यास के लिए जरुरी और प्रिय बने इस का नज़रिया तैयार करना होगा । अपनी टीम को इस सबका महत्व , दिलचस्पी और आंकलन समझाकर  इस विषय में दिलचस्पी लेने वाली अलग अलग ज्ञान वाली टीमको इसकी सिर्फ बेसिक महत्व की हार्द को स्पस्ट स्वरूप से समझाऊंगा ।

अहिंसक संचार मानव विकास संचार प्रक्रिया का सभी परिस्थिओं का वातावरण का मूल हैं।  इसका अभ्यास बेसक ही सबके लिए जरुरी हैं।  बहोत अच्छा विषय हैं।  आइये हम इसको जानते हैं और स्वयं इस विषय में हमारे मानव जीवन के मूल विषय में अपने खुद के विकास , आसपास के वातावरण  , अन्य जिव के प्रति खुद प्रकाशित होकर एक बहेतरीन जीवन  , निर्मल वातवरण और शांतिमयी भविष्य का अभ्यास और स्वाध्याय करे । यह एक दिल चस्प और हदय के भावो को छुने वाला , अपने और हमारे समाज के वातावरण को शुद्ध करने वाला विषय हैं।  तो क्यूना हम सुब इसका बहेतरीन अभ्यास कर इसमें उत्कृस्टता प्राप्त कर एक उत्तम मनुष्य बनने का सौभाग्य और परम तत्व लोगो और समाज और परम तत्व जो भी हैं उससे खुशी के पात्र बने ।  

यह अहिंसक संचार अभ्यासक्रम एकदम छोटासा  और बहोत बहोत और बहोत ही  दिलचस्प हैं।  इस की स्वविकास में अहम भूमिका हैं।   इसका अभ्यास किसीभी कार्य व्यवसाय में जुड़े व्यक्ति कर शकते हैं । यह तक की इसका अभ्यास तो संसार में रहने वाले हर एक व्यक्ति और बच्चो को तो बचपन से ही अभ्यास के साथ व्यवहारु तरीके से सीखना और करे तो भविष्य के लिए श्रेस्ट समाज की रचना हम कर शकते हैं।

विदेशो में अहिंसक संचार का अभ्यास सिखाया जाता हैं।  लोग इसके लिए बहोत फिज़ भी चूकते हैं।  यह अहिंसक संचार एक उत्कृष्ट मानव कौश्लय हैं।  जिसका अभ्यास स्वाध्याय हर एक को करना चाहिए। जिससे आप हर चीज़ में बेस्ट परिणाम प्राप्त कर शकते हे।  इस विषय में कई सारी वैश्विक पुश्तके भी लिखी गयी हैं ।  और इस कौशल्य के माध्यम से विश्व के लोगो ने विकास साधा हैं । सही मायनेमें अहिंसक संचार अभ्यास हमारे जीवन में सिखने का ' मूल ' हैं ।


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